Monday 5 October 2009

महज़ जीने के लिये..

कितने ख़ार हैँ राहोँ मेँ,अब ये भी देख लिया जायेगा।
चल पड़ा हूँ तो सफ़र तो हर हाल मेँ तय किया जायेगा।
अच्छी तरह वाकिफ हूँ मैँ अपने हश्र से
कभी हाथोँ को बाँधा जायेगा कभी होठोँ को सिया जायेगा।
चल पड़ा हूँ तो सफ़र तो हर हाल मेँ तय किया जायेगा।
मरने के ख़ौफ से भूल जाऊँ जीने का भी सलीका
महज़ जीने के लिये हमसे तो न जिया जायेगा।
चल पड़ा हूँ तो सफ़र तो हर हाल मेँ तय किया जायेगा।