Saturday 13 June 2009

आम आदमी



मेरे सामने जो ये तमाम आदमी हैं।
सब मेरी तरह आम आदमी हैं।
आदमी इसलिए क्योँ कि ये चल फ़िर सकते हैं।
कितनी ही ऊंचाई तक चढ़कर कितने भी नीचे गिर सकते हैं।
आम इसलिए क्योँ कि इन्हें बाजार से खरीद कर खाया जा सकता है।
आचार, मुरब्बा या अमचूर कुछ भी बनाया जा सकता है।
दिखने में तो ये भी उनके ही जैसे दीखते हैं।
पर वो शोरूम की चीजें है और ये सड़कों पर बिकते हैं.