Friday 9 October 2009

हिन्दी की व्यथा

कबीर,सूर,मीरा,घनानंद,बिहारी और गोस्वामी हुये।
तेरी कोख से पैदा जयशंकर,प्रेमचंद जैसे नामी-गिरामी हुये।
मैथिली,माखन,महादेवी,सुभद्रा से जगत मेँ उजाला हुआ।
रेणू,हरिऔध,दुष्यंत, दिनकर है तेरा ही पाला हुआ।
तेरे आँचल मेँ पलकर सूर्यकाँत भी निराला हुआ।
नामवर और कमलेश्वर ने है अब भी सँभाला हुआ।
स्वतंत्रता की नीँव थी,तू भारत-मंदिर के शिखर का कलश है।
मैँ मानता हूँ तुझपे छंद है, अलंकार है, तुझमेँ रस है।
मगर मैँ जानता हूँ हिन्दी तू आज कितनी विवश है।
पूरे वर्ष मेँ तेरे लिये केवल एक हिन्दी-दिवस है।

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